शनिवार, ४ मे, २०१३

तू अनं मी........!!

तू चांदण्यांचे शिंपण 

अनं 

मी लाव्हारस होते ........!

तू शीतल गंध चंदन 

अनं 

मी स्वाह: समिधा होते ....!

तू निष्पाप -निरागस संवेदन 

अनं 

मी जाणिवांचे अंदोलन होते .....!

तू घेउनि आलास 

आयुष्य मिलनाचे बंधन 

अनं 

मी क्षितिजावरचे वियोगी 

आक्रंदन होते ........!


                             समिधा    










विरहाचे ढग पाझरले........!!!




सरले, विरले, विरहाचे 

ढग पाझरले 

डोळ्यातून तुझिया 

अंतरी माझिया 

उतरले 

झाले , जीवनलेणे 

जन्माचे .......

तुझे ते 

व्याकूळ पाहणे ......!!!!


                                       " समिधा "